ACNEइसीको आयुर्वेद मे तारूण्यपिटिका या यौवनपिडिका या मुखदूषिका कहा जाता है । तारूण्यावस्था मे दुषित कफ , वात और रक्त की दुष्टि होने से काँटे जैसे फोडे मुँह, गर्दन या कभी कभी पीठ पर आते है । सामान्यरूपसे १६ से २५ की उम्रमे ये व्याधी दिखाई देता है । जहाँपे ये फोडे आते है वहाँपर लालिमा, जलन, पीडा देखने को मिलती है । कभी कभी उसमे पुयप्रवृत्तीभी रहती है । पहले फोडे कम होते है और दुसरे नये उभर आते है ऐसा क्रम इसमे हमेशा देखने को मिलता है । आधुनिक वैद्यक के अनुसार इसे Acne Vulgaris कहते है । Acne bacillus नामक जीवाणूकी वजह्से ये उत्पन्न होते है । दिखनेमे भलेही ये रोग सादा लगे, लेकिन उसपर उपचार करते समय बडा संयम दिखाना पडता है । कई बार ऐसे रोगियोमे वमन / विरेचन / रक्तमोक्षण जैसे पंचकर्म कराने पडते है । कम से कम ४-६ महिने उपचार नियमित रूपसे लेनेसेही कुछ राहत मिलती है । तली हुई चीझे, हरीसब्जी, नया धान्य, उरदकी दाल,अननस-लीची-स्ट्राँबेरी-केला-सिताफल जैसे फल, दही, लह्सुन,शाबुदाना, मुली, गन्ना, गुड, जादा नमक, खट्टी चीझे,मद्यपान, जादा पानी पिना, धूपमे घुमना आदि चीझोसे जितना परहेज रखा जायेगा उतना जल्दी फायदा होता है । |
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आयुर्वेद । अष्टांग आयुर्वेद । व्याधियाँ । अभिप्राय । तस्वीरें । ब्लोग्ज् । दर्शन आयुर्वेद । वैद्य. मनीष जोशी । संपर्क
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