Anaemia – पांडू रोग
जिस रोग मे त्वचा,नाखुन,आँखे
आदि जगहपर पांडूता – श्वेत वर्ण , फिकापन आता है उसे पांडू रोग कहते है । इस रोग
मे रोगी निस्तेज होता है, उसकी कांल्र नष्ट होती है , उसके चेहरेकी – शरीरकी प्रभा
कम होती है ।
आयुर्वेदके अनुसार पांडूरोग पाँच प्रकार का होता है । वातज,पित्तज,कफज,त्रिदोषज और मिट्टी खानेसे होनेवाला ऐसे ये पाँच प्रकार है । अधिक प्रमाणमे व्यायाम करना, दोपहरको खानेके बाद सोना, मद्यपान, अधिक मात्रामे लवण (salty) चीझे खाना, खट्टी चीझे – अतिगर्म-सहन न होनेवाली चीझे खाना, काम-चिन्ता-भय-क्रोध-शोक आदि मानसिकभावोंका अतिरेक ये सब पांडू रोग के कारन है । एक अलग कारनभी आयुर्वेदमे कहा गया है वह है मिट्टी खाने की आदत । त्वचा-नाखुन-नेत्र आदि अवयव निस्तेज होन, काँनमे आवाज आना, भूक कम होना, थकान, अंग दुखना,खाने की इच्छा न होना,चक्कर आना, बुखार, साँस फुलना, अंगमे जडत्व, पिंढीलीयोंमे दर्द, बाँल झडना, आँखोके नीचे सुजन, हृद्स्पंद प्रतित होना, जादा बोलनेकी इच्छा न होना, नींद जादा आना ये सब पांडू रोग के लक्षण है । आधुनिक वैद्यकके अनुसार इसेही Anaemia – Haemoglobin कम होना कहते है । |
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