Epilepsy – मिर्गी / अपस्मार
इस व्याधी को आयुर्वेदमे
अपस्मार कहा जाता है ।
पहिले घट चुकी घटनाओका फिर से ज्ञान होना इसे स्मृती कहते है और जिस व्याधी मे इस स्मृती का नाश होता है या स्मृती कम होती है उसे अपस्मार कहते है । अपस्मारमे विकृत हलचल और उसके साथ मुर्च्छा देखी जाती है । इसमे रोगी बेहोश होता है और कभी शीघ्र तो कभी देरसे इसके दौरे आते रहते है । इसके आयुर्वेदमे चार प्रकार वर्णन किये है । वह है वातज, पित्तज, कफज और त्रिदोषज अपस्मार । ज्ञानेंद्रियोंका इन्द्रियोंके अर्थोंसे संयोग होते समय वह हीन / मिथ्या या अतियोग होना, मलीन आहार क सेवन, मल-मुत्र आदिके आये हुए वेग रोककर रखने कि आदत, अहितकर – अस्व्च्छ आहारका सेवन, रजस्वला स्त्री के साथ मैथुन, काम-क्रोध-भय-उद्वेग आदि कारनोंसे मनमे प्रक्षोभ होना और कभी कभी कुलज इतिहास इन कारनोंसे अपस्मार देखा जाता है । हृदयप्रदेशमे कंप प्रतित होना, पसीना जादा आना, किसीभी चीझकी अत्यंतिक चिन्ता, निद्रानाश, सिरप्रदेश खाली खाली लगना, बिना उच्चारण के शब्द सुनाई देना, नाकसे स्त्राव आना, अरुचि, भूक न लगना, गैसेस, बल कम होना, प्यास जादा लगना, चित्र-विचित्र सपने दिखाई देन – जैसे की हम गा रहे है, नाच रहे है, तेल या मद्य पी रहे है, तेल या मद्य की मलप्रवृत्ती हो रही है ऐसे सपने दिखाई पडते है । ये लक्षण आगे होनेवाले अपस्मारके पूर्वरूप है । अपस्मारका जब वेग आता है तो संज्ञावहनका कार्य बंद होता है । शरीरमे बिभत्स चेष्टा उत्पन्न होकर रोगी बेहोश होता है । बिभत्स चेष्टा याने – दाँत खाना, दाँत भींच जाना, मुँह मे झाग आना, हाथ-पैर पटकना, पुरे शरीरमे आक्षेप आना, आँखे और भौवे विकृत होना ये सब लक्षण दिखाई देते है । वेग आनेके पहिले रोगी को भ्रम ( चक्कर आना) और तमःप्रवेश ( गहिरे अन्धेरे मे हम जा रहे है ऐसा प्रतित होना ) निर्माण होकर वह जमीनपर चेतनाहीन होकर गिर जाता है । जब अपस्मार के वेग नही रहते तब रोगी पुर्ण रूपसे स्वस्थ दिखता है । आधुनिक वैद्यक शास्त्र के अनुसार इसे Epilepsy कहा जाता है । |
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