Gout - गठीया रोग / वातरक्त
इसेही आयुर्वेदमे वातरक्त,
खुड, खुडवात, आढ्यवात, वातबलासक कहा जाता है । खुड का अर्थ है संधि और दुसरा अर्थ
है छोटा । वातरक्तमे छोटे छोटे संधियोंमे विकृती पैदा होती है । लेकीन दुर्लक्षित
किये जानेपर धीरे धीरे बडे संधिभी विकृत होने लगते है ।
आयुर्वेदके अनुसार इस वातरक्त व्याधीमे वात और रक्त की स्वतन्त्ररूपसे दुष्टी होती है और फिर दोनो मिलके शरीर मे व्याधी निर्माण करते है । जादा नमकिन चीझे खान, खट्टी – तीखी चीझोंका अतिसेवन, अजीर्ण रहते अन्न खाना, खराब – शुष्कमांस क सेवन, कुल्थी-उरद-गन्ना-दही-मद्य आदि का अतिसेवन, अतिक्रोध, रात को जागरण, दोपहरमे सोना, खराब रस्ते पर देर तक प्रवास, जादा देरतक खडा रहना आदि कारनोंसे वातरक्तकी शुरुवात होती है । छोटे छोटे संधीयोंमे पीडा होन, वहापर सुजन आना, उसका वर्ण लालिमायुक्त होना, संधीयोंका स्पर्श उष्ण रहना, स्पर्श सहन न होना, संधीयोंपे पिटिकाए आना , अति पसीना या बिल्कुल पसीना न आना, शरीरका वर्ण कृष्ण होना, स्पर्शज्ञान कम होना, कहीपेभी होनेवाली जख्ममे जादा दर्द होना, आलस्य आदि लक्षण वातरक्तमे दिखते है । संधीवात और वातरक्त मे फर्क ये है की जो दवाईया संधीवात पे काम करती है वह वातरक्तको बढाती है और जो दवाईया वातरक्त को कम करती है वह संधीवातपे जादा काम नही करती है । आधुनिक वैद्यक शास्त्रके अनुसार इसे Gout कहा जाता है । Purin नामक घटक का सुक्ष्मपचन ठीक तरहसे न होनेसे ये व्याधी होता है । इसमे शरीर मे Uric Acid की मात्रा बढ जाती है और संधीयोंमे sodium biurate का संचय होने लगता है । इस व्याधीकी शुरुवात जादातर पैर के अंगुठेसे होती है । वहापर अचानकसे burning sensation और throbbing pains चालु होते है । |
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