Renal Calculi (Kidney Stone
/ Urinary Stone) – पथरी
इसको आयुर्वेदमे
‘मूत्राश्मरी’ के नामसे जाना जाता है ।
‘तुल्यतामश्मना यान्ति तस्मात्तामश्मरीं विदुः ।‘ याने मूत्राश्मरीका स्वरूप छोटे आकारके पत्थरकेसमान होनेसे उसको अश्मरी ये नाम दिया गया है । मूत्राश्मरी वृक्क, गविनी, बस्ति या मूत्रमार्ग इनमेसे कहीभी हो सकती है । इस मूत्राश्मरीके आयुर्वेदमे चार प्रकार दिये है । वह इस तरह – वातज, पित्तज, कफज, शुक्रज । शरीरशुद्धीकी जरुरत होनेपरभी वह शुद्धी न करना ( यहा शुद्धीसे पंचकर्म अपेक्षिल है ) और नित्या अपथ्य करना ये मूत्राश्मरीकके कारन है । हर अश्मरीमे कफका होना आवश्यकही है इसलिये हम कह सकते है कि कफ बढानेवाले अपथ्य करना अश्मरी का कारन है । मूत्रमे रहनेवाली तरलता कम होकर जब उसकी घनता बढने लगती है तब मूत्राश्मरी उत्पन्न होती है । जैसे हम नया पानी क मटका लाकर पहिले दो दिन उसमे पानी भरकर रखते है और फिर उसमेसे पानी झरकर निकल जाता है और मटकेके अंदर केवल साका रह जाता है । ठिक वैसेही मूत्रमेसे तरल भाग निकल जाता है और घनभाग एकत्र होकर अश्मरी बनती है । इस अश्मरीसे रोगी को तड़्पा देनेवाला दर्द होता है । यह दर्द मूत्राशय, गुर्दा और वृषणोंके मध्य स्थान और पुरुषोंमे लिंगके अग्रभागतक मे होता है ।यह दर्द मूत्रत्यागके समय या मूत्रत्यागके बाद जादा बढ़ जाता है । रोगीको गाढ़े रंगकी मूत्रप्रवृत्ती होती है । मूत्र रूकरूक कर आता है या बिल्कुल बंद हो जाता है । रोगी अपने मूत्रस्थान को बारबार हाथसे मलता रहता है । कभी कभी अश्मरीके वजहसे अन्दरके अवयवोमे जख़्म हो जाती है और फिर उस वजहसे मूत्रमे रक्तभी दिखाई देता है । आधुनिक वैद्यकशास्त्रके अनुसार मूत्रकी द्रवता कम होना और घनता बढ़ जाना ये Urinaru calculus का कारन कहा है । Metabolism मे विकृती आनेसे मूत्रमे Uric acid / phosphates / calcium carbonate / sodium urate / oxalate जैसे पदार्थोंकी प्रचुरता आ जाती है और फिर स्टोन तयार होता है । इसके सिवाय cysten, genthine, indicant आदि पदार्थोंसेभी अश्मरी बनती है पर उन्का प्रमाण कम है । जब इन अश्मरीओंका भेदन होकर वह चुरचुर होकर मूत्रद्वारा बाहर निकलती है तब उसे शर्करा ( Gravel ) कहते है । |
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