Psoriasis – चम्बल / अपरस
आयुर्वेदमे इसे कीटीभ कुष्ठ
ऐस कहा जाता है । कोई कोई वैद्य इसे सिध्म कुष्ठभी मानते है । चाहे नाम कोईभी दिया
हो, पर लक्षण रहते है वात और कफ दोष दुष्टीके ।
यह रोग प्रयः घुटनों, पीठ, छाती, जाँघोंपे देखा जाता है । वैसे ये कहीभी हो सकता है । त्वचापर सफेद – गुलाबी रंगके छोटे छोटे दाने जैसी पिटीकाए उभर आती है । उनमे खुजली बहुत रहती है । और उसमेसे भुसी निकलती रहती है । यह अत्यंत हठीला रोग है और कई वर्षोंतक तक्लीफ देता रहता है । ये जादातर बारीश के मौसममे और ठंठीके मौसममे उभर आता है । गर्मीके मौसममे कभी कभी तो पूरे रूपसे गायब हो जाता है । वात और कफ बढ़ानेवाले कारनोंसे त्वचापर होनेवाला ये रोग अधिक नमक खानेसे और अत्यधिक चिन्ता करनेसे औरभी बढ़ जाता है । पहिले त्वचापर गुलाबी लाल रंग के बहुतसारे दाने निकल आते है जो आपसमे मिलकर एक बड़ा चकत्ता बन जात है । ये चकत्तावाला स्थान त्वचासे थोडा उपर उठा रजता है और उसमेसे चाँदी जैसे रंगकी भुसी निकलती रहती है । इसमेसे पीप तो नही निकलता पर कन्डू बहुत रहता है । कन्डू इतना रहता है की रोगी उसकी बजहसेही परेशान हो जाता है । धीरे धीरे ये रोग समस्त शरीरमे फैलने लगता है । वैसे ये रोफ जानलेवा तो नही है पर केवल कन्डू और दिखनेमे भद्दा होनेसे रोगी मानसिक रूपसे मायूस, नर्वस रहता है । आयुर्वेदमे सोरिआसिसके लिये बहुतही अच्छे उपाय दिये गये है । पंचकर्म और खाने की दवाई और उसके साथमे आध्यात्मिक चिकित्सा काफी हदतक कारगिर सिद्ध हुई है । आधुनिक वैद्यकशास्त्रके अनुसार इसे Psoriasis कहतेहै । इसमे वैसे कोईभी जीवाणू या विषाणूओंके संक्रमण नही रहता है । ये एक Metabolism मे हुई गडबडीके कारन होनेवाला रोग है । |
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